02) सुवा गीत (Suwa Geet)


सुआ नृत्य :- छत्तीसगढ़ के स्त्रियों का यह समूह नृत्य है। नारी मन की भावना, सुख-दुख की अभिव्यक्ति और उनके अंगों का लावण्य ”सुवा नृत्य” या ”सुवना” में देखने को मिलता है। इस नृत्य का आरंभ दीपावली से होता है जो अगहन मास तक चलता है। इस वृत्ताकार नृत्य में एक लड़की जो ”सुग्गी” कहलाती है, धान से भरी टोकरी में मिट्टी का सुग्गा रखती है-कहीं एक तो कहीं दो। ये शिव और पार्वती के प्रतीक होते हैं। टोकरी में रखे सुवे को हर रंग के नए कपड़े और धान के नव मंजरियो से सजाया जाता है। सुग्गी को घेरकर स्त्रियाँ ताली बजाकर नाचती और गाती हैं। इनके दो दल होते हैं। पहला दल जब खड़े होकर ताली बजाते गीत गाता है तो दूसरा दल अर्द्ध वृत्त में झूककर ऐड़ी और अंगूठे की पारी पारी उठाती और अगल बगल तालियाँ बजाकर नाचतीं और गाती हैं /
* छत्तीसगढ़ का नृत्यगीत है।
* कार्तिक माह के कृष्णपक्ष से प्रारंभ होते इस गीत-नृत्य में छत्तीसगढ़ी नारी और कन्याएं अपने जूड़े में धान की बालियॉ खेंचकर एक टोकरे में मिट्टी की बनी सुवा की एक या दो प्रतिमा रखकर घर-घर में जाकर, वृत्ताकार होकर, झुक-झुक कर नृत्य करती है और समवेत स्वरों में सुवागीत गाती है।
* सुवागीत नृत्य को श्री मृकुटधर पांडेय ने ‘छत्तीसगढ़ का गरबा नृत्य कहा है‘
* सुआ नृत्य के उपलक्ष्य में मालकिन रूपया-पैसा अथवा धन-चावल देकर विदा करती है, तब सुआ नृत्य की टोली विदाई गीत गाती है।
कुछ पंक्तिया आप के सामने :
”पइयाँ मै लागौं चंदा सुरज के रे सुअनां
तिरिया जनम झन देय
तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर
जहाँ पठवय तहं जाये।
अंगठित मोरि मोरि घर लिपवायं रे सुअना।
फेर ननद के मन नहि आय
बांह पकड़ के सइयाँ घर लानय रे सुअना।
फेर ससुर हर सटका बताय।
भाई है देहे रंगमहल दुमंजला रे सुअना।
हमला तै दिये रे विदेस
पहली गवन करै डेहरी बइठाय रे सुअना।
छोड़ि के चलय बनिजार
तुहूं धनी जावत हा, अनिज बनिज बर रे सुअना।
कइसे के रइहौं ससुरार
सारे संग खइबे, ननद संग सोइबे रे सुअना।
के लहुंरा देवर मोर बेटवा बरोबर
कइसे रहहौं मन बाँध।”

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