भोजली गीत छत्तीसगढ़ का एक लोकगीत है। छत्तीसगढ़ के महिलाएँ ये गीत सावन के महीने में गाती है। सावन का महीना, जब चारों ओर हरियाली दिखाई पड़ती है तब गाँव में भोजली का आवाज़ें हर ओर सुनाई देती हैं। भोजली याने भो-जली। इसका अर्थ है भूमि में जल हो। यहीं कामना करती है महिलायें इस गीत के माध्यम से। इसीलिये भोजली देवी की अर्थात प्रकृति की पूजा करती है।
[1] उदाहरणार्थ, एक भोजली में कहा गया है-पानी बिना मछरी,
पवन बिना धाने।
सेवा बिना भोजली के
तरसे पराने।
* श्रावण शुक्ल नवमीं के दिन से छत्तीसगढ़ के नारी समाज में भोजली का उत्सव मनाना प्रारंभ हो जाता है।
* एक निश्चित स्थल पर भोजली स्थापित की जाती है जहॉ सब सखी-सहेलियॉ एकत्रित होती है।
* मट्टी से भरी टोकनियों में जवारा बोई जाती है।
* धान या गेहूं के बीज बोकर नित्य-प्रति उनके बिरवों की सेवा की जाती है, हल्दी पानी छिड़का जाता है।
* भोजली का यह कार्यक्रम श्रावण पूर्णिमा तक चलता है,
* भोजली गीतों में भोजली की आरती, स्वागत, जागरण और भोजली ठंडा करने के गीत प्रमुख है।
Nyc bro
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